एक समय की बात

As the tree grew, both the distance and the dependence kept on increasing. Then the root changed its decision. It started thinking for itself

एक समय की बात
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एक समय की बात है, एक पेड़ की जड़ ने फैसला लिया।

वह यह कि अब से वह उस पर चढ़ाया गया जल का काम से कम उपयोग करेगी और अधिक से अधिक त्याग करेगी। और यह सब वह अपनी टहनियों और पत्तों की भलाई के लिए करेगी।

कुछ दिन जड़ ने ऐसा किया। उसे अच्छा महसूस हुआ (शुरुआत में)।

फिर कुछ सप्ताह बीते। इसी तरह कुछ माह।

कुछ वर्ष भी चल दिए।

अब जड़ ने महसूस किया कि वह दिन-प्रतिदिन कमज़ोर होती जा रही है। क्षण - प्रतिक्षण उसमें परिवर्तन आ रहें हैं।

अब उस पर चढ़ाया गया जल वह पत्तों तक नहीं पहुंचा पा रही है। और यह भी तब घटित हुआ जब पत्ते जल के लिए जड़ पर पूरी तरह आश्रित हो चुके थे। और अब तो जड़ और पत्तों में पहले से अधिक दूरी आ चुकी थी...

जैसे-जैसे पेड़ बड़ा हुआ दूरी और निर्भरता दोनों बढ़तीं हीं चली गई।


फिर जड़ ने अपना फैसला बदला

उसने अपने लिए विचार करना शुरू किया:

क्यों न कुछ धूप और जल मैं अपने लिए समेटा करूं?

और यह फैसला भी उसने इसी मक्सद से लिया ताकि वह अपने कर्तव्यों का भलीभांति निर्वाह कर सके।


कुछ दिन पश्चात

मानो इस फैसले की प्रशंसा में, पानी-नीर से लबालब एक पत्ता अपनी टहनी से अलग होकर अपनी नींव को नमन करने पहुंचा।


English Version (Translated by Google)

Once upon a time, the root of a tree decided that from now on it would use as little water as possible and discard as much as possible. And it would do all this for the good of its branches and leaves.

The root did this for a few days. It felt good (initially).

Then a few weeks passed. A few months passed.

A few years passed.

Now the root realized that it was getting weaker day by day. Changes were taking place in it moment by moment.

It was no longer able to carry the water offered to it to the leaves. And this also happened when the leaves had become completely dependent on the root for water. And now there was a greater distance between the root and the leaves than before...

As the tree grew, both the distance and the dependence kept on increasing.

Then the root changed its decision.

It started thinking for itself:

Why don't I collect some sunlight and water for myself?

And he took this decision with the sole purpose of performing his duties well.

A few days later

As if in appreciation of this decision, a leaf full of water separated from its branch came to bow down to its root.


This post is dedicated to all mothers.