दिल से लिखा जाए या दिमाग से
टूटे दिल से निकली हुई शायरी या कविता या पत्र,
जिसमे कोई सुर-ताल नही है,
जिसमे कोई लय नहीं है,
जो कि एक पागल झरने की तरह
बहता है अपने स्रोत से।
उसमे ज़्यादा गहराई है या सच्चाई है?
या वह तालाब जो कि एक तर्क-संगत दिमाग से उपजता है,
जो कि लय -बद्ध है,
स्थिर और शांत है?
मेरे ख्याल से दोनों ही अपनी-अपनी जगह उपयुक्त हैं, उचित हैं।
न ही टूटे दिल से उठने वाले उफान को दबाना चाहिए
और न ही उसे बेकाबू, बेलगाम हो कर दूसरो पर कहर बरपाने देना चाहिए।
और तर्क-संगत दिमाग से उपजा हुआ तालाब भी अधिकतर उथला ही होगा।